एक पत्थर खिड़की का शीशा तोड़ते हुए बस के अंदर तक घुस आया, जबकि दूसरा शीशा तोड़कर वहीं अटक गया। सौभाग्य से कोई यात्री घायल नहीं हुआ, लेकिन पत्थर यदि किसी खुली खिड़की से सीधे यात्री को लगता, तो गंभीर या जानलेवा चोट संभव थी। घटना के बाद कुछ क्षणों के लिए बस में अफरा-तफरी मच गई।
ड्राइवर ने खतरे के बावजूद बस नहीं रोकी, जबकि यात्रियों में भय का माहौल बना रहा। बाद में कंडक्टर ने बताया कि इस क्षेत्र में पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, जिससे अंदेशा है कि यह कोई नई शरारत नहीं, बल्कि दोहराया जा रहा षड्यंत्र है। इस घटना ने कश्मीर में होने वाली पत्थरबाज़ी की घटनाओं की याद दिला दी है। सवाल उठता है कि झारखंड जैसे शांत क्षेत्र में ऐसी घटनाओं का बार-बार होना क्या किसी आतंकी मानसिकता का इशारा है?
यात्रियों ने मांग की है कि प्रशासन इस पूरे मामले की गंभीर जांच कराए, और इस रूट पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाए। साथ ही पत्थरबाज़ों की पहचान कर उन पर कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि श्रद्धालुओं की यात्रा फिर भयभीत न हो। बाल-बाल बचे, लेकिन सवाल ज़िंदा हैं – कब रुकेगी पत्थरबाज़ी? और कब होगा सफर सुरक्षित?